आर्य समाज
( Arya Samaj )
आर्य समाज ( Arya Samaj )
आर्य समाज ( Arya samaj ) की स्थापना वर्ष 1875 में स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा बम्बई में की गई।
भारत के प्रमुख समाज सुधारक आंदोलनों में से आर्य समाज एक है,
आर्य समाज (Arya samaj ) ने छुआछूत, जाति व्यवस्था जैसी सामाजिक बुराइयों का कड़ा विरोध किया।
परंतु, आर्य समाज के विषय में जानने से साथ इसके संस्थापक तथा महान समाज सुधारक दयानंद सरस्वती के विषय में जानना भी आवश्यक है।
स्वामी दयानंद सरस्वती (1824-83)-
दयानंद सरस्वती का जन्म 1824 ईसवी में गुजरात के मौरवी जिले में हुआ था, इनके बचपन का नाम मूलशंकर था।
जब मूलशंकर 21 वर्ष के थे तब इन्होंने गृह त्याग किया, वर्ष 1848 में इनकी मुलाकात स्वामी पूर्णानंद से हुई जिन्होंने मूल शंकर को दयानंद सरस्वती नाम दिया।
इसके बाद मथुरा में दयानंद सरस्वती की भेंट एक अंधे संत विरजानंद से हुई, विरजानंद प्रभावित होकर दयानंद ने इन्हें अपना गुरु बना लिया,
आगे चलकर दयानंद सरस्वती ने पूरे भारतवर्ष में हिंदू धर्म तथा इसकी संस्कृति को आगे बढ़ाने की प्रतिज्ञा ली।
अपनी इसी प्रतिज्ञा के चलते इन्होंने वर्ष 1863 में आगरा में पाखंड खंडनी पताका लहराई।
वर्ष 1875 में दयानंद सरस्वती ने मुंबई में आर्य समाज ( Arya samaj ) की स्थापना की तथा 2 वर्ष बाद 1877 में आर्य समाज का मुख्यालय लाहौर में बनाया।
पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आर्य समाज सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ,
दयानंद सरस्वती एक कठोर सुधारवादी थे, इन्होंने “वेदों की ओर लौटो” का नारा भी दिया।
आर्य समाज में छुआछूत जाति व्यवस्था जैसी सामाजिक बुराई का तो विरोध किया
परंतु वर्ण व्यवस्था का समर्थन भी किया जिसका आधार कर्म बताया ना कि जन्म।
स्वामी जी तथा अंग्रेजी गवर्नर की मुलाकात
एक बार अंग्रेज गवर्नर लॉर्ड नार्थब्रुक ने दयानंद सरस्वती जी से भेंट की,
तथा इन्हें अपने भाषणों में रानी विक्टोरिया काफी गुणगान करने के लिए कहा,
परंतु दयानंद सरस्वती जी ने ऐसा करने से मना कर दिया
जिसके पश्चात अंग्रेजों ने आदि समाज के लिए अपनी प्रोत्साहन की नीति को बदल दिया।
वर्ष 1874 में केशव चंद्र सेन से प्रेरणा लेकर दयानंद सरस्वती ने हिंदी में ” सत्यार्थ प्रकाश “ को प्रकाशित किया।
इसी के साथ इन्होंने वेद भाष्य तथा वेद भाष्य भूमिका जैसी पुस्तकों की भी रचना की।
हिंदू धर्म को त्याग कर ईसाई धर्म को अपनाने वाले हिंदुओं को वापस उनकी संस्कृति में बुलाने के लिए दयानंद सरस्वती ने शुद्धि आंदोलन चलाया,
तथा धर्म परिवर्तन कर चुके हिंदुओं को पुनः हिंदू धर्म में सम्मिलित किया।
दयानंद सरस्वती ही वे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग तथा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का महत्व बताया और “स्वराज” शब्द का प्रयोग किया।
हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने वाले प्रथम व्यक्ति भी दयानंद सरस्वती ही थे।
इन्होंने 1882 ईस्वी में एक गौ रक्षा समिति का गठन किया,
इसी के अगले वर्ष 30 अक्टूबर 1883 में अजमेर में इनका देहांत हो गया।
शिक्षा के क्षेत्र में आर्य समाज-
दयानंद सरस्वती ने देश के लगातार पिछड़ने का प्रमुख कारण अज्ञानता बताया था।
1883 में दयानंद सरस्वती की मृत्यु के पश्चात आर्य समाज के अंदर हिंदी तथा अंग्रेजी भाषा की शिक्षा को लेकर लगातार टकराव उत्पन्न हुआ।
इसी में अंग्रेजी शिक्षा के समर्थक लाला हंसराज ने 1886 ईस्वी में लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की,
तथा हिंदी भाषा के समर्थक स्वामी श्रद्धानंद (मुंशी राम) ने वर्ष 1902 कांगड़ी,हरिद्वार में गुरुकुल विश्वविद्यालय की स्थापना की।
हिंदू धर्म के पुनरुत्थान के लिए दयानंद सरस्वती जी ने 10 सिद्धांत दिए जिनका आर्य समाज द्वारा अनुसरण भी किया गया यह सिद्धांत निम्नलिखित हैं :-
1- वेदों का अध्ययन करना चाहिए क्योंकि सत्य केवल वेदों में ही समाहित है।
2- हवन का आधार वेदों में दिए मंत्रों को होना चाहिए।
3- मूर्ति पूजा का खंडन ।
4- धार्मिक यात्राओं तथा अवतारवाद का विरोध।
5- आवागमन तथा कर्म के सिद्धांत पर बल।
6- स्त्री शिक्षा का विकास।
7- विधवा विवाह को कुछ विशेष परिस्थिति परिस्थितियों में सहमति।
8- बहु विवाह तथा बाल विवाह का विरोध।
9- निराकार ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास।
10- संस्कृत तथा हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार।