बंदा बहादुर
Banda Bahadur
Banda Bahadur
बंदा बहादुर
Banda Bahadur
1670 ईस्वी में बंदा बहादुर का जन्म जम्मू प्रदेश के पुंछ जिले के रजौली गांव में हुआ था।
इनके पिता का नाम रामदेव भारद्वाज था जो एक राजपूत थे।
इनका वास्तविक नाम लक्ष्मणदेव था,
कुछ समय पश्चात बंदा बहादुर का नाम माधव दास रखा गया तथा बैराग धारण करने के पश्चात इन्हें माधव दास बैरागी कहा जाने लगा।
आंध्र प्रदेश के नांदेर नामक स्थान पर इनकी मुलाकात सिक्खों के दसवें व अंतिम गुरु गोविंद सिंह से हुई,
तथा गुरु से प्रभावित होकर यह गुरु गोविंद का शिष्य बन गया।
गुरु गोविंद सिंह द्वारा इन्हें गुरुबक्श सिंह नामक नया नाम दिया गया।
यह स्वयं को गुरु का बंदा कह कर पुकारते थे जिस कारण इनका नाम बंदा बहादुर पड़ गया।
गुरु गोविंद सिंह द्वारा बंदा बहादुर को सिक्खों की राजनीतिक कमान संभालने का आदेश प्राप्त हुआ,
जिसके पश्चात बंदा बहादुर सिखों के पहले राजनीतिक नेता बने।
बंदा बहादुर ने ही प्रथम सिख राज्य की स्थापना की और सिक्खों पर किए गए अत्याचारों का बदला लेना शुरू कर दिया।
राज्य स्थापना के बाद बंदा बहादुर का मुख्य उद्देश्य पंजाब में एक सिक्ख राज्य की स्थापना करना,
तथा सिक्खों पर अत्याचार करने वाले लोगों से बदला लेना था।
अपने इस उद्देश्य की शुरूआत इन्होंने सोनीपत से की और इसके बाद सरहिंद के सूबेदार वजीर खान को पराजित कर उसकी हत्या कर दी।
बंदा बहादुर ने मुगल अधिकारियों को हटाकर उनके स्थान पर सिक्ख अधिकारियों की नियुक्ति की।
सर्वप्रथम बंदा बहादुर ने ही गुरु नानक और गुरु गोविंद सिंह के नाम पर सिक्के चलाए तथा सिक्ख राज्य की मुहर भी बनवाई।
गुरदासपुर का युद्ध (1716)-
Battle of Gurdaspur (1716) –
गुरदासपुर के पास युद्ध में बंदा बहादुर को घेर लिया गया,
परंतु बंदा बहादुर 8 महीनों तक बहादुरी से लड़ते रहे,
जिसके पश्चात इन्हें पकड़कर दिल्ली ले जाया गया जहां मुगल बादशाह फर्रुखशियर ने इन्हें मृत्युदंड दे दिया।
शहादरा में बंदा बहादुर ने हजारों मुगल सैनिकों को गाजर मूली की तरह काटकर मौत के घाट उतार दिया था, यही कारण है कि शहादरा कत्लगड़ी के नाम से विश्व विख्यात है।
शरबत खालसा, गुरुमत्ता प्रथा और राखी प्रथा
Sharbat Khalsa, Gurumatta system and Rakhi system
शरबत खालसा-
Sharbat Khalsa-
बंदा बहादुर की मृत्यु के पश्चात वैशाखी के दिन तथा दिवाली के दिन वर्ष में दो बार हर समुदाय सिक्ख एक साथ इकट्ठा होते थे,
इस प्रथा को शरबत खालसा कहा जाता था।
गुरुमत्ता प्रथा-
Gurumatta system
शरबत खालसा प्रथा के तहत इकट्ठा हुए सिक्ख समुदाय किसी बात पर निर्णय लेते थे, निर्णय लेने की इस प्रथा को गुरु मत्ता कहा जाता था।
राखी प्रथा-
Gurumatta system
1748 में सिक्खों के छोटे-छोटे दल कपूर सिंह के नेतृत्व में आपस में मिल गए और दल खालसा का गठन किया,
इसी दल खालसा संगठन के द्वारा राखी प्रथा को शुरू किया गया,
जिसके तहत प्रत्येक गांव से उपज का 1/5 भाग सुरक्षा कर के रूप में लिया जाता था अर्थात उपज के 1/5 भाग के बदले दल खालसा संगठन उस गांव की सुरक्षा का दायित्व लेता था।
जानिए सिक्ख धर्म से बारे में ,
सिक्ख धर्म एवं सिक्ख गुरु / Sikhism and Sikh Guru