Champawat jila चम्पावत जिला
Champawat jila -15 ,सितम्बर 1997 को अल्मोड़ा जिले से अलग करके चम्पावत जिले का गठन किया गया।
चम्पावत जिले (Champawat jila) का मुख्यालय चम्पावत क्षेत्र है
महाभारत काल से ही चम्पावत क्षेत्र का अपना महत्व रहा है
इस क्षेत्र को घटोत्कच के निवास स्थान के रूप में जाना जाता है
यहां पर घटकु मंदिर ( ghaktu mandir ) वर्तमान में घटोत्कच मंदिर भी है
घटोत्कच मंदिर के पास ही हिडिम्बा मंदिर भी है
प्राचीन ग्रंथों में इस इस क्षेत्र को काली कुमाऊं या कुमु काली कहा गया है।
चम्पावत ( Champawat ) के पूर्वी पहाड़ी पर एक मंदिर है जिसका नाम है क्रान्तेश्वर मंदिर है
यहीं पर भगवान विष्णु के कुर्मु अवतार वाली शिला भी है ,जिसे कुर्मु पाद भी कहते
चम्पावत क्षेत्र चंद वंश की प्रारंभिक राजधानी भी रहा है
चम्पावत की (champawat ) स्थापना प्रथम चंदवंशीय राजा सोमचन्द (Somchnad) ने की थी
इसके सम्बन्ध में घटना प्रचलित है कि इलाहाबाद के चन्द्रवंशीय चन्देला (Chandola )राजपूत में से एक कुंवर सोमचन्द अपने 27 सलाहकारों के साथ बद्रीनाथ की यात्रा पर आये
इस समय काली कुमाऊं क्षेत्र में कत्यूरी राजा ब्रह्मदेव (Brhamdev) का शासन था।
कुंवर सोमचन्द ने ब्रह्मदेव की एकमात्र कन्या ‘चम्पा’ से विवाह किया जिसमे उन्हें दहेज में उपहार के रूप में चम्पावती नदी के तट पर 15 बीघा जमीन प्राप्त हुई
जिसमें सोमचन्द के द्वारा एक नगर की स्थापना की गई
इस नगर के मध्य में सोमचन्द के द्वारा एक किले का निर्माण करवाया गया जिसका नाम राजबुंगा (Rajbunga) रखा गया।
चम्पावत (champawat) का प्राचीन नाम कुमु (Kumu) है ,यह नाम यहां के कानदेव पर्वत पर भगवान विष्णु के कूर्मावतार के कारण पड़ा था।
चम्पावत जिले (champawat district) की भौगोलिक स्थिति
Geographical Statistics Champawat district
समुद्रतल से चम्पावत (champawat) की ऊंचाई 1615 मीटर है
भौगोलिक रूप से चम्पावत (champawat) की सीमाएं राज्य के चार जिलों के साथ लगती है
ये जिले हैं पिथौरागढ़ (Pithoragarh), अल्मोड़ा (Almora), नैनीताल (Nainital )और उधमसिंहनगर ( Udhamsinghnagar)
चम्पावत जिला (champawat district )अंतरराष्ट्रीय सीमा भी बनाता है इसकी सीमा नेपाल (Nepal) देश के साथ लगती है
चम्पावत जिले (champawat district) का क्षेत्रफल (Area) -1766 वर्ग किमी
क्षेत्रफल की दृष्टि से चम्पावत राज्य का सबसे छोटा जिला है
जिले की कुल जनसंख्या ( Population ) -2,59,648
जनसंख्या की दृष्टि से चम्पावत दूसरा सबसे कम जनसंख्या वाला जिला है
चम्पावत जिले (champawat district ) की कुल साक्षरता (Literacy)
– 79.83%
चम्पावत जिले (champawat district ) का जनघनत्व (Population Density)
– 147
चम्पावत जिले (champawat district) का लिंगानुपात (Sex Ratio)
– 980
चम्पावत जिले (champawat district) की प्रशासनिक स्थिति
Administrative Status of Champawat District
चम्पावत जिले (champawat district)की तहसीलों की संख्या -5
1 – चम्पावत
2 – पाटी
3 – पूर्णागिरि
4 –लोहाघाट
5 –बाराकोट
चम्पावत जिले (champawat district) में विकासखण्डों की संख्या – 4
1 – चम्पावत
2 –बाराकोट
3 –पाटी
4 –लोहाघाट
चम्पावत जिले (champawat district) के विधानसभा क्षेत्र – 2
लोहाघाट , चम्पावत
चम्पावत जिले के प्रमुख मन्दिर
Major Temples of Champawat District
बालेश्वर महादेव मंदिर / Baleshwar Mahadev mandir
इस मन्दिर का निर्माण चन्द राजाओं के द्वारा 10 -12 वीं सदी में करवाया गया था।
इसका निर्माण जगन्नाथ मिस्त्री ने किया था , कहा जाता है कि चन्द राजाओं ने मंदिर के निर्माण के बाद वास्तुकार जगन्नाथ मिस्त्री के हाथ काट दिए थे
इस मंदिर के परिसर में चम्पावती देवी (Champawati Devi )और रत्नेश्वर (Ratneshwar ) मन्दिर है
बालेश्वर मन्दिरों को 1952 में राष्ट्रीय धरोहर के रूप में घोषित किया गया
एक हथिया नौला /Ek Hathiya Naula
इसका निर्माण जगन्नाथ मिस्त्री (jagannaath mandir )ने अपनी बेटी कस्तूरी की मदद से बनाया था, कहा जाता है कि इस नौले का निर्माण करके जगन्नाथ मिस्त्री ने चन्द राजाओं का घमण्ड तोड़ा था ।
चूंकि इस मंदिर का निर्माण जगन्नाथ ने एक हाथ से किया था जिस वजह से इसका नाम एक हथिया नौला या बावली पड़ा
पूर्णागिरि मंदिर
Poornagiri Temple
चम्पावत (champawat) जिले के टनकपुर में अन्नपूर्णा शिखर पर यह मंदिर 108 सिध्द पीठो मैं से एक है ,इस स्थान को महाकाली की पीठ माना जाता है।
कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री और शिव की अर्धांगिनी देवी सती की नाभि का भाग यहाँ पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था।
मीठा रीठा साहिब
Meetha Reetha Sahib
यह स्थान सिक्खों के प्रमुख स्थानों में से एक है।
सिक्खों के प्रथम गुरू, गुरू नानक जी यहां पर आए थे। यह गुरूद्वारा लोदिया और रतिया नदियों के संगम पर स्थित है।
इस गुरूद्वारे के परिसर में रीठे के कई वृक्ष लगे हुए है।
ऐसा माना जाता है कि गुरू के स्पर्श से रीठे मीठे हो जाते थे इस वजह से इस गुरुद्वारे को मीठा रीठा साहिब के नाम से जाना गया।
हिंगला देवी मंदिर
Hingla Devi Temple
हिंगला देवी का यह मंदिर माँ भगवती को समर्पित है
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है की माँ से माँ भगवती अखिल तारिणी चोटी तक झूला ( हिंगोल ) झूलती थी। इस वजह से इस स्थान का नाम हिंगलादेवी पड़ा।
सप्तेश्वर मंदिर
Sapteshwar Temple
चम्पावती गाड़ के किनारे सात मंदिरों का समूह है ,इन मंदिर समूहों को संयुक्त रूप से सप्तेश्वर मंदिर कहा जाता है।
ये सातों मंदिर है
1 – बालेश्वर मन्दिर
2 -डीबटेश्वर मन्दिर
3 – क्रान्तेश्वर मन्दिर
4 – ऋषेश्वर मन्दिर
5 – घटकेश्वर मन्दिर
6 – मानेश्वर मन्दिर
7 – ताड़केश्वर मन्दिर
इन मंदिर समूहों में सबसे प्राचीन व प्रमुख मंदिर बालेश्वर मंदिर
घटोत्कच मन्दिर
Ghatotkach Temple
चम्पावत (champawat) मैं स्थित यह मंदिर महाबली भीम के पुत्र घटोत्कच को समर्पित है।
महाभारत युद्ध में महारथी कर्ण के द्वारा अमोघ अस्त्र का प्रयोग करने पर घटोत्कच का धड़ इस जगह पर आकर गिरा
शनिदेवता का मंदिर
Shanidev Temple
शनिदेवता का यह मंदिर चम्पावत जिले के मेराड़ी गाव में स्थित है
अन्य प्रमुख मंदिरों में ,
>चम्पावत (champawat) जिले के देवीधुरा में वाराही देवी का मंदिर है।
>झूठा मंदिर चम्पावत में स्थित है
>हिडिम्बा देवी का मंदिर चम्पावत में स्थित है।
>गुरना माई का मंदिर चम्पावत में स्थित है।
>ताकेश्वर और आदित्य मंदिर भी चम्पावत में स्थित है।
>खेतीखान सूर्य मंदिर चम्पावत में है, इस मंदिर में दीप महोत्स्व का आयोजन किया जाता है।
चम्पावत जिले (champawat district )के प्रमुख स्थल
लोहाघाट
चम्पावत जिले में स्थित लोहाघाट लोहावती नदी के किनारे बसा हुआ है
चम्पावत (champawat) नगर से यह स्थल 14 किमी की दूरी पर स्थित है।
वराह पुराण में इस स्थान को लोहार्गल कहा गया है।
कत्यूरी शासन कान में लोहा घात को सुई के नाम से जाना जाता था।
ब्रिटिश काल में इस स्थान को लोहूघाट कहा जाता था।
ऋषेश्वर महादेव का मंदिर लोहाघाट में है।
मानेश्वर मंदिर जिसका निर्माण राजा निर्भयचंद ने करवाया था लोहाघाट में ही स्थित है
लोहाघाट का सूखीढांग क्षेत्र अचार के लिए प्रसिद्ध है।
बाणासुर का किला लोहाघाट में ही स्थित है
बाणासुर का किला
चम्पावत के लोहाघाट में समुद्र तल से 1859 मीटर की ऊंचाई पर यह किला स्थित है।
बणासुर नाम के दानव का वध भगवान श्री कृष्ण के द्वारा इसी स्थान पर किया गया।
लोहाघाट में ही लोहावती नदी के किनारे मायावती आश्रम भी स्थित है।
मायावती आश्रम
समुद्र तल से 1940 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस आश्रम को “अद्वैत आश्रम” के नाम से भी जाना जाता है ,अद्वैत आश्रम रामकृष्ण मठ की एक शाखा है।
मायावती आश्रम की स्थापना 19 मार्च 1899 में की गयी थी।
इस आश्रम को बनाने में मुख्य भूमिका एच सेवियर की रही
मायावती आश्रम के प्रथम प्रमुख स्वामी स्वरूपानंद थे।
इसी आश्रम में स्वामी विवेकानंद को आध्यत्म प्राप्ति हुई थी
जिसके बाद 1901 में स्वामी विवेकानंद ने इस स्थान पर रामकृष्ण शांति मठ की स्थापना की
मायावती आश्रम में ही 1903 में धमार्थ अस्पताल की स्थापना की गई।
स्वामी विवेकानंद ने अल्मोड़ा की अपनी तीसरी यात्रा के दौरान ‘प्रबुद्ध भारत’ का
प्रकाशन कार्यालय को मद्रास से हटाकर मायावती आश्रम में स्थानांतरित करने का निर्णय लिया ।
इस आश्रम में एक छोटा सा संग्रहालय और एक पुस्तकालय भी है
पंचेश्वर
चम्पावत (champawat) के लोहाघाट से 40 किमी की दूरी पर स्थित यह स्थान चामू के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
चामू देवता की पूजा पशु रक्षक के रूप में की जाती है।
यह स्थान काली और सरयू नदी के संगम पर स्थित है
पंचेश्वर में शारदा नदी ( महाकाली नदी ) पर पंचेश्वर बाँध बनाया गया है।
पंचेश्वर बाँध परियोजना
काली नदी पर स्थित यह दो देशो भारत और नेपाल की एक संयुक्त बहुउद्देशीय परियोजना है
पंचेश्वर बाँध परियोजना के अंतर्गत दो बाँध है
१. पंचेश्वर बाँध
२. रुपालिगाड बाँध
पंचेश्वर बाँध की उत्पादन क्षमता 6480 मेगावाट है
रुपालिगाड बाँध की उत्पादन क्षमता 244 मेगावाट है
पंचेश्वर बाँध महाकाली संधि का हिस्सा यह संधि भारत और नेपाल के मध्य 1996 में हुई थी।
पाताल रूद्रेश्वर गुफा
पाताल रुद्रेश्वर गुफा की खोज सन 1993 में कई गयी थी।
यह गुफा चम्पावत (champawat) जिले के बारसि गांव में स्थित है।
चम्पावत (champawat) जिले के प्रमुख किले
राजबुंगा का किला – इसका निर्माण राजा सोमचन्द द्वारा करवाया गया था।
बाणासुर का किला – स्थानीय भाषा में इसे मटकोट कहा जाता है।
इन किलों के अलावा चम्पावत जिले में गोल्लाचौड का किला भी है
चम्पावत जिले (champawat district )के प्रमुख मेले / महोत्स्व
लड़ी धूरा मेला (Ladi Dhura Mela)
>लड़ी धूरा मेला चंपावत (Champawat) के बाराकोट (Barakot) में पद्मा देवी मंदिर (Padma Devi Temple) में लगता है।
>इस मेले का आयोजन कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है।
>इसमें स्थानी लोग बाराकोट (Barakot) तथा काकड़ गांव (Kaakad Ganv/Village) में धुनी बनाकर रात-भर गाते हुए देवता की पूजा करते है।
>दूसरे दिन देवताओं को रथ में बैठाया जाता है। भक्तजन मंदिर की परिक्रमा कर पूजा करते हैं।
बग्वाल मेला (Bagwal Mela)
>चंपावत (Champawat) जिले के देवीधुरा (Devidhura) में मां वाराहीदेवी मंदिर के प्रांगण में हर साल रक्षा बंधन (श्रावणी पूर्णिमा) के दिन बग्वाल मेले का आयोजन किया जाता है।
>स्थानीय बोली में इस मेले को ‘आषाढ़ी कौतीक (Aasadi Kautik)’ कहा जाता है।
>इस मेले की प्रुमख विशेषता है लोगों द्वारा एक दूसरों पर पत्थरों की वर्षा करना।
जिसमें चंयाल (Chanyat), वालिक (Valik), गहड़वाल (Gahdwal) व लमगाडीया (Lamgadiya) चार खामों (Khamon) के लोग भाग लेते हैं।
>बग्वाल खेलने वालों को द्योके कहा जाता है।
श्री पूर्णागिरी मेला (Shri Purnagiri Mela)
> चंपावत (Champawat) जिले के टनकपुर (Tanakpur) क्षेत्र के पास स्थित अन्नपूर्णा शिखर (Annapurna Peak) पर श्री पूर्णागिरी मंदिर (Shri Purnagiri Tample) में हर साल चैत्र व आश्विन की नवरात्रियों में पूर्णागिरी मेले का आयोजन किया जाता है।
> माता पूर्णागिरी देवी की गणना देवी भगवती जी के 108 सिद्धपीठ में की जाती है।
मानेश्वर मेला (Maneshwar Mela)
चंपावत (champawat) के मायावती आश्रम (Mayawati Aashrm) के पास स्थित मानेश्वर (Maneshwar) नाम की चमत्कारी शिला के पास ही इस मेले का आयोजन किया जाता है।
इस पत्थर के पूजन से पशु, विशेषकर दुधारु पशु स्वस्थ रहते है
इस मेले में दुधारू पशुओ की पूजा की जातीं है
इन मेलो और महोत्सवो के अलावा भी चम्पावत जिले काई अन्य मेले व महोत्सवो का आयोजन किया जाता है जो निम्न हैं
> शिलादेवी मेला चम्पावत (champawat) जिले के पाटी में लगता है
> हरेश्वर का मेला चम्पावत (champawat) जिले लोहाघाट में लोहावती नदी के तट पर लगता है
> फटकशीला का मेला चमपावत के लोहाघाट में लगता है।
> कालसिन का मेला चम्पावत के श्यामलाताल क्षेत्र में लगता है।
> चैतोल का मेला चम्पावत में लगता है इस मेले का आयोजन चैत्र अष्टमी को किया जाता है
> झूला देवी का मेला चम्पावत क्षेत्र में लगता है।
> आदित्य देव साठी मेले का आयोजन चम्पावत के पाटी में किया जाता है।
> गौरा अठ्ठावली – यह चमपावत ( champawat) में राजी जनजाति का प्रमुख त्यौहार है।
जिले से सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
> उत्तराखंड के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी , कालू मेहरा का जन्म 1831 में चम्पावत (champawat )जिले के बीसुंग गॉव में हुआ था
>हर्षदेव औली जिन्हे काली कुमाऊं का शेर कहा जाता है इनका जन्म भी चम्पावत (champawat )जिले के खेतिहान में 1890 में हुआ था।
हर्षदेव औली की स्मृति में खेतिहान में सेनानी पार्क का निर्माण किया गया
अंग्रेज हर्षदेव औली को उत्तराखंड का मुसोलिनी कहते थे।
चम्पावत (champawat ) की काली नदी पर 1928 में शारदा नहर का निर्माण किया गया था।
> टनकपुर परियोजना भी 1993 से शारदा नदी पर है।
> सप्तेश्वर जल विद्युत परियोजना शारदा नदी पर है।
> चम्पावत और पिथौरागढ़ के बीच में लासपा दर्रा स्थित है
> रुक्मणि नौला चम्पावत ( champawat ) में है।
> गोलचौड़ा किला चम्पावत (champawat ) में है।
> रण शिला ( भीम शिला ) और बारह शिला चम्पावत (champawat ) जिले के देवीधुरा में वाराही मंदिर के पास स्थित है।
> रानी का चबूतरा चंपावत (champawat) में स्थित है।
> एबट पर्वत भी चम्पावत (champawat) में अवस्थित है।
> चम्पावत (champawat ) राज्य का सबसे कम ग्राम पंचायत वाला जिला है।
> चम्पावत ( champawat ) के झिंझाड से तामपत्र प्राप्त हुए हैं
> जनजातीय आस्था का प्रमुख केंद्र घटकु चम्पावत (champawat ) में है।
NAINITAL -THE LAKE DISTRICT OF UTTARAKHAND
नैनीताल जिले की झीलें व प्रमुख स्थल
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