ब्रह्म समाज का विकास
Development of Brahmo Samaj
Brahmo Samaj – राजा राममोहन राय ( raja ram mohan roy ) के 1830 में इंग्लैंड चले जाने पर
आचार्य रामचंद्र विद्या बागीश ने ब्रह्म समाज (Brahmo Samaj ) का नेतृत्व संभाला।
1833 में राजा राममोहन राय ( raja ram mohan roy ) की मृत्यु के पश्चात द्वारिका नाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज ( brahmo samaj )का संचालन किया।
1843 ईस्वी में देवेंद्र नाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज ( brahmo samaj )का कार्यभार अपने हाथों में लिया जिससे ब्रह्म समाज को एक नई दिशा मिली।
तत्वबोधिनी सभा की स्थापना
Establishment of Tatvabodhini Sabha
1839 ईस्वी में देवेंद्र नाथ टैगोर ने मात्र 22 साल की आयु में तत्वबोधिनी सभा की स्थापना भी की थी।
1856 ईस्वी में देवेंद्र नाथ टैगोर के पहाड़ी क्षेत्र में चले जाने के कारण अब ब्रह्म समाज का नेतृत्व केशव चंद्र सेन (Keshav Chandra Sen) ने संभाला।
केशव चंद्र सेन (Keshav Chandra Sen) ने ब्रह्म समाज को अत्यधिक लोकप्रिय बनाया
बंगाल के बाहर भी ब्रह्म समाज की शाखाएं फैलाई जैसे उत्तर प्रदेश, पंजाब, मद्रास।
1865 इसवी तक ब्रह्म समाज ( brahmo samaj ) की 65 शाखाएं अनेक क्षेत्रों में फैल चुकी थी।
केशव चंद्र सेन के उदारवादी होने के कारण शीघ्र ही ईसाई, मुस्लिम, पारसी आदि धर्मों का प्रभाव भी ब्रह्म समाज पर पड़ने लगा
और ब्रह्म समाज में इन धर्मों से संबंधित धर्म पाठ भी होने लगे।
नवीन ब्रह्म समाज का गठन
Formation of new Brahmo Samaj
देवेंद्र नाथ टैगोर ने 1865 ईसवी में केशव चंद्र सेन से आचार्य का पद लेकर उनसे ब्रह्म समाज का नियंत्रण वापस ले लिया, जिसके पश्चात केशव चंद्र सेन ने नवीन ब्रह्म समाज का गठन किया
जिसे आदि ब्रह्म समाज तथा भारतीय ब्रह्म समाज भी कहा गया।
1872 में केशव चंद्र सेन ने ब्रह्म विवाह एक्ट पारित करवाया
तथा अपनी 12 वर्षीय पुत्री का विवाह वैदिक रीति रिवाजों के साथ कूचबिहार के राजा के साथ कर दिया
जिसके पश्चात ब्रह्म समाज ( brahmo samaj) में एक और फूट पड़ी फलस्वरूप 1878 ईसवी में शिवनाथ शास्त्री और आनंद मोहन बोस ने साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना की।
ब्रह्म समाज को आधुनिक भारत का पहला मिशनरी आंदोलन माना जाता है
केशव चंद्र सेन को पहला मिशनरी माना जाता है क्योंकि यह जगह-जगह भ्रमण करके ब्रह्म समाज का प्रचार प्रसार करते थे।
ब्रह्म समाज का उद्देश्य(Purpose of Brahmo Samaj) –
राजा राममोहन राय की मान्यताओं के आधार पर हिंदू धर्म में सुधार करना।
ब्रह्म सभा का आधार आस्तिकता, एकेश्वरवाद तथा आचार संबंधी बातों पर आधारित था।
ब्रह्म समाज में जाति प्रथा, बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराइयों का भी विरोध किया।
राजा राम मोहन रॉय – आधुनिक भारत का जनक
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