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pauri jila ( पौड़ी जिला ) – पौड़ी जिले से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

पौड़ी जिला pauri jila

पौड़ी जिला pauri jila Map

पौड़ी जिला pauri jila Map



pauri jila

पौड़ी जिला (pauri jila)

स्थापना –    1840

मुख्यालय – पौड़ी

पौड़ी जिले का इतिहास

पौड़ी गढ़वाल पहले कई गढ़ो में विभाजित था।
इन गढ़ो में से एक गढ़ चाँदपुरगढ़ का शासक अजयपाल था,
अजयपाल के द्वारा इन सभी गढ़ो को जीतकर एक संयुक्त गढ़वाल की स्थापना की गई। संयुक्त गढ़वाल के अंतर्गत वर्तमान समय के देहरादून , हरिद्वार, और सहारनपुर इलाको के कुछ क्षेत्र शामिल थे।
अजयपाल के द्वारा संयुक्त गढ़वाल की राजधानी को देवलगढ़ से श्रीनगर स्थानांतरित की गई।
संयुक्त गढ़वाल की घाटी के क्षत्रों पर मुगलो के द्वारा आक्रमण किये गए।
मुगल सेनापति नवजात खान द्वारा 1636 में घाटी पर आक्रमण किया गया पर उस आक्रमण को वीरांगना रानी कर्णावती के द्वारा विफल कर दिया गया।

संयुक्त गढ़वाल पर काफी लंबे समय तक पंवार वंश का शासन रहा,
पवार वंश के अंतिम शासक प्रद्युम्न को 1804 में गोरखों के द्वारा पराजित कर इस क्षेत्र में क्रूर गोरखा शासन की स्थापना करी गई।

गोरखा के अधिकार में यह क्षेत्र 1814 तक रहा, जिसके बाद 1814 से 1816 के बीच में अंग्रेजी सेना और गोरखा सेना के बीच में युद्ध लड़ा जाता है, इस युद्ध के फल स्वरुप हुई “सुगौली की संधि” के तहत यह पूरा क्षेत्र अंग्रेजों के अधिकार में आ जाता है।
अंग्रेजों के अधिकार क्षेत्र में आने के पश्चात संयुक्त गढ़वाल क्षेत्र में अंग्रेजो के द्वारा पहले कमिश्नर ई गार्डिनर की नियुक्ति 3 मई 1815 में की जाती है।
बाद में 1839 में ब्रिटिश गढ़वाल से अल्मोड़ा को पृथक कर दिया गया
जिसके पश्चात 1840 में अंग्रेजो के द्वारा राजधानी को श्रीनगर से पौड़ी स्थानांतरित कर दिया गया और पौड़ी जिले के रूप में इसे मान्यता दे दे
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 1969 में पौड़ी गढ़वाल मंडल का मुख्यालय बना दिया गया

पौड़ी जिले की भौगोलिक स्थिति
Geographical location of Pauri district

पौड़ी जिला ( pauri jila ) उत्तराखंड राज्य के सर्वाधिक सात जिलों के साथ सीमा बनाता है,
ये जिले हैं –
पूर्व में अल्मोड़ा,
उत्तर – पूर्व में रुद्रप्रयाग,
दक्षिण – पूर्व में नैनीताल,
पश्चिम में हरिद्वार,
उत्तर – पश्चिम में देहरादून तथा उत्तर में टिहरी गढ़वाल
इसके अलावा पौड़ी जिले की सीमा उत्तर प्रदेश राज्य के साथ भी लगती है।

पौड़ी जिले का अक्षांशीय विस्तार –

पौड़ी जिला ( pauri jila ) 29 डिग्री 21 मिनट उत्तरी अक्षांश से,
30 डिग्री 15 मिनट उत्तरी अक्षांश के बीच में है।

पौड़ी जिले का देशांतरीय विस्तार –

पौड़ी जिला ( pauri jila )  78 डिग्री 10 मिनट पूर्वी देशांतर से,
79 डिग्री 10 मिनट पूर्वी देशांतर के बीच है।

पौड़ी गढ़वाल का लगभग 90% से अधिक भाग पर्वतीय है,
जबकि केवल 10% भाग ही मैदानी क्षेत्र के अंतर्गत आता है।
पौड़ी गढ़वाल का पर्वती भाग मध्य हिमालय और शिवालिक हिमालय के अंतर्गत आता है।


पौड़ी जिले की प्रशासनिक स्थिति
Administrative Status of Pauri District

विधानसभा क्षेत्र6

यमकेश्वर, चौबट्टाखाल, लैंसडाउन
कोटद्वार, श्रीनगर (S.C के लिए आरक्षित), पौड़ी (S.C के लिए आरक्षित )

तहसील12

धुमाकोट, जाखड़ीखाल, चाकिसैण, यमकेश्वर, सतपुली, थलीसैंण
कोटद्वार, श्रीनगर, लैंसडाउन, चौबट्टाखाल, पौड़ी, बीरोंखाल।

विकासखंड15

पोखड़, नोनीडाडा, खिस्सु, पणखेत, द्वारीखाल,
यमकेश्वर, दुगड्डा, पाबौ, कोट, बीरोंखाल,
रिखणीखाल, कल्जीखाल , पौड़ी, थलीसैण।

नगर पालिका 1

कोटद्वार, इसकी स्थापना 1951 में की गई थी।

पौड़ी जिले की जनसंख्या687271
पौड़ी जिले ( pauri jila )  की अधिकांश आबादी ग्रामीण है, यहां की लगभग 83.6 % आबादी ग्रामीण है।

पौड़ी जिले की दशकीय वृद्धि दर – 1.41%
पौड़ी जिला ( pauri jila )  उत्तराखंड राज्य का सबसे कम 10 की वृद्धि दर वाला जिला है

जनसंख्या घनत्व 129
लिंगानुपात   1103
साक्षरता दर –  82.02%
पुरुष साक्षरता 92.71%
महिला साक्षरता 72.6%


उत्तराखंड का पामीर दुधातोली
Dudhatoli Pamir of Uttarakhand

दुधातोली श्रृंखला को उत्तराखंड का पामीर कहा जाता है,
यह उत्तराखंड राज्य के 3 जिलों में फैला है, यह 3 जिले हैं –
पौड़ी, चमोली और अल्मोड़ा।

दुधातोली श्रृंखला मध्य हिमालय या लघु हिमालय क्षेत्र के अंतर्गत आती है।
इस श्रृंखला से पांच नदियों का उद्गम होता है, यह पांच नदियां हैं –
पश्चिमी नयार, पूर्वी नयार, पश्चिमी रामगंगा, विनो और आटागाड़।

1 -आटागाड़ नदी 

इसका उद्गम दुधातोली श्रृंखला से होता है ,चमोली जिले के सिमली नामक स्थान पर यह नदी पिंडर नदी से मिल जाती है

2- वीनू नदी

दुधातोली श्रृंखला से निकलने वाली वीनू नदी अल्मोड़ा में स्थित केदार के पास रामगंगा से मिल जाती है

3-नयार या नाद गंगा नदी

नयार नदी का उद्गम दुधातोली श्रंखला से दो भागों में होता है

4- पूर्वी नयार

पूर्वी नयार नदी दुधातोली श्रंखला के जखमोलीधार
के पास स्थित ( स्यूसी या कैन्युरागाड़ ) से निकलती है।

5-पश्चिमी नयार नदी

पश्चिमी नयार नदी का उद्गम दुधातोली शृंखला के स्योली गाड़ नमक स्थान से होता है।

ये दोनों नयार नदियां आगे जाकर फूलचट्टी नामक स्थान पर (व्यास घाटी) पौड़ी में गंगा नदी से मिल जाती है।


पश्चिमी रामगंगा

पश्चिमी रामगंगा नदी का उद्गम दुधातोली शृंखला से होता है,
जिसके बाद यह नदी 3 जिलों चमोली, पौड़ी और अल्मोड़ा से होकर के बहती है
कालागढ़ नाम का बांध इसी नदी पर बना हुआ है।
यूपी में कन्नौज नामक स्थान पर पश्चिमी रामगंगा नदी गंगा नदी से मिल जाती है

दुधातोली श्रृंखला को भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की मांग 1960 में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के द्वारा की गई थी।
वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी की समाधि स्थली गोदियाबगड़ (दुधातोली) में ही है, इसी स्थान पर हर साल 12 जून को मेले का आयोजन किया जाता है।

अलकनंदा नदी

अलकनंदा नदी का उद्गम सतोपंथ हिमनद ( अल्कापुरी बांद हिमनद ) से होता है।
चमोली रुद्रप्रयाग और पाड़ीपौड़ी होते हुए ,अलकनंदा नदी टिहरी के पास स्थित देवप्रयाग में भागीरथी नदी से मिल जाती है।


पौड़ी जिले में स्थित प्रमुख परियोजनाएं
Major Projects located in Pauri District

रामगंगा परियोजना

रामगंगा परियोजना, रामगंगा नदी पर बनाई गई है
इसकी शुरुआत 1976 में की गई थी, इसकी क्षमता लगभग 198 मेगा वाट है

चीला परियोजना

चीला परियोजना गंगा नदी पर बनी है, यह परियोजना पौड़ी जिले में स्थित है।
इसकी क्षमता 3144 मेगा वाट है

श्रीनगर जल विद्युत परियोजना

श्रीनगर जल विद्युत परियोजना अलकनंदा नदी पर बनी है,
यह प्रयोजना पौड़ी जिले के श्रीनगर में स्थित है, इसकी क्षमता लगभग 330 मेगावाट है।

उत्यासूं बांध

उत्यासूं बांध, पौड़ी जिले में अलकनंदा नदी पर बना है।


पौड़ी जिले के प्रमुख स्थल
Major places in Pauri district

कोटद्वार ( Kotdwar )

कोटद्वार को गढ़वाल का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है।
यह क्षेत्र खोह नदी के तट पर स्थित है, प्राचीन समय मे इसको कुटद्वार या कूटदर कहा जाता था।
1904 में खोह नदी में आई भीषण बाढ़ के कारण कोटद्वार शहर तबाह हो गया था, जिसके पश्चात 1917 में वर्तमान का कोटद्वार क्षेत्र अस्तित्व में आया।
मोरध्वज किला, कण्वआश्रम, पीरबाबा, सिद्धबली आदि कई प्रमुख स्थल कोटद्वार के पास स्थित है

दुगड्डा (dugadda)

दुगड्डा पौड़ी जिले ( pauri jila ) के लंगूरगाड़ और सिलगाड़ नमक दो नदियों के संगम पर स्थित है,
इस क्षेत्र को बसाने का श्रेय पंडित धनीराम मिश्र को दिया जाता है।
प्राचीन समय में गढ़वाल की सबसे बड़ी मंडी के रूप में दुगड्डा को जाना जाता था। दुगड्डा को शिव प्रसाद डबराल ( चारण ) के साधना स्थल के रूप में भी जाना जाता है,
स्वतंत्रता के समय भवानी सिंह रावत और चंद्रशेखर आजाद के द्वारा दुगड्डा के जंगलों में ही अज्ञातवास जीवन व्यतीत किया गया था।
1930 और 1945 में दुगड्डा में पंडित जवाहरलाल नेहरू आए थे

पौड़ी (pauri)

पौड़ी गढ़वाल जिले का मुख्यालय “पौड़ी” में है।
1969 में इसकी स्थापना करी गई थी, पौड़ी कंडोलिया पर्वत की ढाल पर बसा है।
झंडीधार नामक शिखर पौड़ी में ही स्थित है।
1982 में पौड़ी को हिल स्टेशन घोषित किया गया था इंद्रकील नामक पर्वत पौड़ी में ही स्थित है।
“भीमी की मंगरी” और “भादो की मंगरी” नाम की जलधाराएं पौड़ी में ही स्थित है

लैंसडाउन (lansdown)

पौड़ी जिले में स्थित लैंसडाउन को प्राचीन समय में “कालों का डंडा” के नाम से जाना जाता था।
ब्रिटिश भारत के वायसराय लॉर्ड लैंसडाउन के नाम पर ही इस क्षेत्र का नाम लैंसडाउन पड़ा।
लैंसडाउन में ही गढ़वाल पलटन 1887 में लाई गई थी।
यहां पर कालेश्वर महादेव नामक मंदिर स्थित है ,इसलिए लैंसडाउन को कालेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
दरबान सिंह नेगी और गब्बर सिंह नेगी के स्मारक यहीं पर है।

श्रीनगर (shrinagar)

श्रीनगर अलकनंदा नदी के तट पर बसा हुआ है।
इस का प्राचीन नाम ” श्रीपुर ” या ” श्री क्षेत्र ” है।
इस क्षेत्र को 1358 में गढ़वाल नरेश के द्वारा बसाया गया था।
1894 मैं गोना झील टूटने के कारण अलकनंदा नदी में आई बाढ़ से “श्रीनगर” तबाह हो गया था।
गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर में ही स्थित है, इसकी स्थापना 1973 में की गई थी।
15 जनवरी 2009 को गढ़वाल विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दे दिया गया।
श्रीनगर के पास प्रसिद्ध देवलगढ़ स्थित है, जहां पर “सोम का भांडा” स्थित है।
यहीं पर नाथ सिद्ध की गुफा है , “केशव मठ” और “शंकर मठ” भी श्रीनगर में ही स्थित है।
कर्मठ”शंकर मठ” को आदिगुरु शंकराचार्य के द्वारा स्थापित किया गया था ,इस के गर्भ गृह में भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की मूर्ति है।

कण्व आश्रम (kanwa ashram)

कण्वाश्रम हेमकूट और मणिकूट पर्वतों के बीच में स्थित है,
यह स्थान मालिनी नदी के तट पर स्थित है,कण्वाश्रम को प्राचीन समय में विद्या के केंद्र के रूप में जाना जाता था।
महान कवि कालिदास ने यहीं से शिक्षा प्राप्त की थी , कण्वाश्रम को कालिदास के द्वारा ” किलसय ” प्रदेश कहा गया है।
कण्वाश्रम को महर्षि गौतम विश्वामित्र और कण्व ऋषि की तपस्थली भी माना जाता है।

देवलगढ़ (devalgarh)

इस क्षेत्र की स्थापना कांगड़ा शासक देवल ने की थी, इसिलए इसे देवलगढ़ कहा जाता है।
1515 में राजा अजय पाल के द्वारा देवलगढ़ को पौड़ी की राजधानी बना दिया गया था।
देवलगढ़ में ही “राज राजेश्वरी” मंदिर स्थित है, साथ ही यहां पर “सोम का डांडा” जिसे राजा का चबूतरा भी कहते हैं, और नाथ संप्रदाय के काल भैरव मंदिर भी हैं।


पौड़ी जिले ( pauri jila ) के प्रमुख मंदिर

पौड़ी जिले ( pauri jila ) के प्रमुख मंदिर

पौड़ी जिले ( pauri jila ) के प्रमुख मंदिर
Major temples of Pauri district

नीलकंठ महादेव मंदिर – पौड़ी जिले में स्थित यह मंदिर ऋषिकेश और पौड़ी की सीमा
                                      पर बना हुआ है।

ज्वालपा देवी मंदिर – यह मंदिर पाली जिले में बहने वाली नया नदी के तट पर है।

राजराजेश्वरी देवी मंदिर – देवलगढ़ में स्थित राज राजेश्वरी देवी मंदिर को पवार वंशजों की कुलदेवी के रूप में माना जाता है।

इन मंदिर के अलावा पौड़ी जिले में,

  • कोटेश्वर महादेव मंदिर
  • तारकेश्वर मंदिर
  • बिनसर महादेव मंदिर
  • सिद्ध बली मंदिर
  • क्यूकालेश्वर मंदिर
  • कंडालिया मंदिर
  • धारी देवी मंदिर
  • नाग देवता मंदिर
  • गरुड़ मंदिर
  • कमलेश्वर मंदिर
  • कल्याणेश्वर महादेव मंदिर
  • काली कमली मंदिर
  • गोरखनाथ गुफा मंदिर
  • अष्टावक्र मंदिर
  • माणिक नाथ आदि मंदिर है

पौड़ी जिले ( pauri jila ) के प्रमुख मेले व महोत्सव
Major Fairs and Festivals of Pauri District

गिन्दी या गैंदा मेला

यह मेला पौड़ी जिले के दक्षिणी भाग मकर संक्रांति के अवसर पर आयोजित किया जाता है। इस मेले को “सात खून माफ” मेला भी कहा जाता है।

बिनसर महादेव मेला

बिनसर महादेव मेला कुमाऊं और गढ़वाल की संयुक्त संस्कृति का प्रतीक माना जाता है, यह मेला 2 दिनों तक आयोजित किया जाता है।इसका आयोजन कार्तिक पूर्णिमा के दिन होता है

दनगल मेला

यह मेला पौड़ी जिले ( pauri jila ) के सतकुली नामक स्थान पर लगता है, इस मेले का आयोजन महाशिवरात्रि के अवसर पर किया जाता है

सिद्धबली मेलापौड़ी जिले के कोटद्वार में खोह नदी के तट पर इस मेले का आयोजन किया जाता है

मुंडनेश्वर मेला –  यह मेला पौड़ी जिले के कल्जीखाल नामक स्थान पर लगता है

मनसार मेला पौड़ी जिले में स्थित कोट नामक स्थान के पास सितोंस्यु पट्टी में यह मेला लगता है, माता सीता इसी जगह पर धरती में                          समाई थी।

भैरव गढ़ी मेला भैरव गढ़ी मेला पौड़ी जिले के राजीखाल के पास लगता है

बैकुंठ चतुर्दशी मेला पौड़ी जिले में स्थित श्रीनगर में यह मेला आयोजित किया जाता है।

नीलकण्ठ का मेला पौड़ी जिले के मणिकूट पर्वत की तलहटी में ऋषिकेश के समीप इस मेले का आयोजन किया जाता है।

ताड़केश्वर महादेव मेला यह मेला पाली जिले के लैंसडाउन क्षेत्र में आयोजित होता है।

ज्वालपा देवी मेला नयार नदी के तट पर यह मेला आयोजित होता है।

किलकिलेश्वर शिवरात्रि मेला यह मेला पौड़ी जिले के श्रीनगर में आयोजित होता है।

एकेश्वर मेला एकेश्वर मेला पौड़ी जिले में सतपुली नमक स्थान के पास लगता है।

मधु गंगा घाटी विकास गंगा महोत्सव इसका आयोजन भी पौड़ी जिले में होता है

इसके अलावा पौड़ी जिले में डांडा नागराज मेला , दूंखाल मेला भी आयोजित किये जाते हैं


पौड़ी जिले में स्थित प्रमुख संस्थान में संग्रहालय

हाई एल्टीट्यूड प्लांट फिजिओलॉजी संस्थान या उच्च स्थलीय पौंध शोध संस्थान

इसकी स्थापना 1979 में की गई थी।
23 अप्रैल 1990 में यह संस्था एक स्वायत्त संस्थान बना दिया गया
इस संस्थान की एक शाखा – अल्पाइन रिसर्च सेंटर, तुंगनाथ (रूद्रप्रयाग) में स्थित है

हिमालयन पुरातत्व एवं नृवंशीय संग्रहालय

इसकी स्थापना 1980 में की गयी थी।
इस संस्थान की स्थापना मध्य हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति के संरक्षण के लिए किया गया था।

मौलाराम चित्र संग्रहालय – यह संस्थान श्रीनगर (पौड़ी) में स्थित है।

इन प्रमुख संस्थानों के अलावा पौड़ी जिले में दरबान सिंह संग्रहालय स्थित है, जोकि लैंसडाउन मैं है ,इसकी स्थापना 1983 में की गई थी।
और पौड़ी जिले में राज्य आंदोलनकारियों को समर्पित एक अभिलेखागार संग्रहालय भी यहीं पर है।
पौड़ी जिले में राज्य के प्रथम जागर महाविद्यालय की स्थापना जयानंद भारती के द्वारा श्रीनगर में की गई थी।


पौड़ी जिले में स्थित वन्य जीव विहार नेशनल पार्क
Wildlife senctury and National Parks located in Pauri district

सोना नदी वन्य जीव विहार -पौड़ी जिले में स्थित इस वन्य जीव विहार की स्थापना 1987 में की गई थी

चीला वन्य जीव विहार – इस वन्य जीव विहार की स्थापना 1977 में हुई थी

कार्बेट नेशनल पार्क –
कार्बेट नेशनल पार्क उत्तराखंड राज्य के 2 जिलों नैनीताल और पौड़ी में फैला है इसका अधिकांश भाग पौड़ी जिले में स्थित है 1936 में इसकी स्थापना करी गई थी


पौड़ी जिले के अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
Other important facts of Pauri district

  • पौड़ी जिले के पर्वतीय भागों में राती जनजाति निवास करती है।
  • एकता सम्मेलन ( 1914 में ) पौड़ी जिले के दुगड्डा में हुआ था।
  • पौड़ी जिले में ही अमन सभा का गठन 1930 में किया गया था।
  • उत्तराखण्ड के प्रथम व्यक्तिगत सत्याग्रही “जगमोहन सिंह नेगी” का सम्बंध पौड़ी जिले से ही है।
  • गढ़वाल हिंदी पत्रकारिता के भीष्म पितामह कहे जाने वाले विश्वम्भर दत्त चन्दोला का सम्बंध पौड़ी जिले से ही है।
  • वर्तमान में भारत देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल पौड़ी जिले के घिंडी बानेलस्यूँ गांव के रहने वाले हैं।
  • प्रसिद्ध पर्वतारोही हर्षवंती बिष्ट का संबंध पौड़ी जिले से ही है,
    हर्षवंती बिष्ट ने 1981 में नंदा देवी चोटी का सफल आरोहण किया था।
    हर्षवंती बिष्ट को पर्यावरण संरक्षण के लिए 2010 में सीसीआई ग्रीन अवार्ड मिला है
  • वीरांगना तीलू रौतेली का जन्म पौड़ी जिले के गुराड़ गांव में हुआ था ।
  • वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का जन्म भी 1891 में पौड़ी के मसौ गांव में हुआ था।
    23 अप्रैल 1930 में हुए प्रसिद्ध पेशावर कांड के वीर चंद्र सिंह गढ़वाली नायक थे,
    इसमें वीरचन्द्र सिंह गढ़वाली ने 2/18 गढ़वाली सेना की टुकड़ी का नेतृत्व किया था
  • मुकुन्दराम बड़थ्वाल का जन्म 1887 में पौड़ी जिले में ही हुआ था,इनका उपनाम दैवज्ञ था।
    भारतीय ज्योतिष अनुसंधान ने मुकुंदराम बड़थ्वाल को अभिनय “वराहमिहिर” की उपाधि दी थी।
  • “इनसाइक्लोपीडिया ऑफ उत्तराखंड” के नाम से मशहूर शिव प्रसाद डबराल जिनको की चारण भी कहा जाता है, पौड़ी जिले का दुगड्डा क्षेत्र इनकी कर्मस्थली था।

 


उधम सिंह नगर जिला (Udham Singh Nagar District) : UDHAMSINGH NAGAR JILA

पिथौरागढ़ जिला : Pithoragarh District : Hindlogy

Champawat jila चम्पावत जिला

Almora District | अल्मोड़ा जनपद

नैनीताल जिला ( Nainital jila )

बागेश्वर जिला | Bageshwar jila (Bageshwar District)

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