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सिक्ख धर्म एवं सिक्ख गुरु / Sikhism and Sikh Guru

sikh dharm and sikh guru

सिक्ख धर्म की स्थापना सिक्खों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी ने की थी जिसके पश्चात सिक्ख धर्म को 10 गुरु प्राप्त हुए
दोस्तों, आज की इस पोस्ट में सिक्ख धर्म तथा सिक्खों के समस्त 10 गुरुओं का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है

गुरु नानक (1469 ईसवी से 1539 ईसवी)

जन्म स्थान- तलवंडी

-गुरु नानक जी के पिता का नाम कालू जी तथा माता का नाम तृप्ता था।

-यह खत्री जाति से संबंधित थे

-पत्नी का नाम सुलक्षणी था।

-गुरु नानक जी ने सिक्ख धर्म की स्थापना की तथा गुरु नानक के अनुयायी सिक्ख कहलाए।

-सिक्खों के पहले गुरु गुरुनानक लोदी वंश के अंतिम शासक इब्राहिम लोदी तथा मुगल काल में बादशाह बाबर और हिमायू के समकालीन थे।

गुरु नानक द्वारा किए गए कार्य-

-गुरु नानक ने नानक पंथ चलाया।

-गुरु नानक ने निशुल्क भोजनालय अर्थात गुरु का लंगर की स्थापना की।

-गुरु नानक द्वारा बनाए गए संगत (धर्मशाला) और पंगत (लंगर) गुरु नानक के अनुयायियों के लिए मिलन स्थान अर्थात एक संस्था के रूप में कार्य करता था जहां उनके अनुयायी प्रतिदिन मिला करते थे।

-गुरु नानक ने अपने प्रिय शिष्य लहना को अपना उत्तराधिकारी बनाया जो गुरु अंगद के नाम से सिक्ख धर्म के दूसरे गुरु बने।

मृत्यु- 1539 में करतारपुर (डेराबाबा) नामक स्थान में गुरु नानक जी की मृत्यु हो गई।


2- गुरु अंगद (1539 ईसवी से 1552 ईसवी)

-गुरु अंगद का वास्तविक नाम लहना था।

-ये सिक्ख धर्म के प्रथम गुरु गुरुनानक के प्रिय शिष्य थे।

-गुरु अंगद ने खादुर में गुरुगद्दी बनवाई तथा गुरु नानक द्वारा चलाई गई लंगर व्यवस्था को नियमित (स्थाई) कर दिया।

-गुरु अंगद भी खत्री जाति से संबंधित थे।

-गुरु अंगद द्वारा गुरुमुखी लिपि का आविष्कार किया गया।


3- गुरु अमरदास (1552 ईसवी से 1574 ईसवी)

-सिक्खों के तीसरे गुरु अमरदास थे ,जो मुगल बादशाह अकबर के समकालीन थे।

-गुरु अमर दास ने गोइन्दवाला में अपनी गद्दी स्थापित की।

गोइंदवाल में गुरु अमर दास ने एक बावड़ी का निर्माण कराया जिसके विषय में कहा जाता है कि इस बावड़ी का जल पीने से सभी रोग दूर हो जाते हैं।

-गुरु अमर दास ने हिंदू धर्म से अलग एक विवाह पद्धति प्रचलित की जिसे ‘ लवन ‘ विवाह पद्धति कहा गया।

-गुरु अमर दास द्वारा अपने उपदेशों तथा विचारों का प्रचार-प्रसार करने के लिए 22 गद्दीयों की स्थापना की गई गई तथा  प्रत्येक गद्दी में एक – एक महंत की नियुक्ति की गयी।

-गुरु अमर दास ने लंगर का भोजन करने के पश्चात् ही गुरु से मिलने का नियम बनाया।

-इनकी ख्याति से प्रभावित होकर मुगल बादशाह अकबर इन से मिलने स्वयं गोइंदवाल आया था।

-अकबर ने गुरु अमरदास की पुत्री ‘बीबीभानी’ को कुछ गांव दान में दिए।

-गुरु अमरदास ने अपने शिष्य एवं दामाद रामदास को अपनी गुरु गद्दी का उत्तराधिकारी बनाया।


4- गुरु रामदास (1574 ईसवी से 1581 ईसवी)

-गुरु रामदास सिक्खों के चौथें गुरू बने।

-ये तीसरे गुरु अमर दास के शिष्य तथा दामाद थे।

-मुगल बादशाह अकबर से प्राप्त 500 बीघा जमीन पर गुरु रामदास ने अमृतसर नामक नगर की स्थापना की।

Note- पूर्व में अमृतसर का नाम ‘रामदासपुर’ था।

-अमृतसर नगर की स्थापना के लिए उन्होंने अपने अनुयायियों को धन एकत्रित करने के लिए भेजा ,गुरु रामदास के यह अनुयायी ‘रामदासी’ कहलाए।

-गुरु रामदास ने अपने तीसरे पुत्र अर्जुन को गद्दी का उत्तराधिकारी नियुक्त कर गुरु  के पद को वंशानुगत बना दिया।


5- गुरु अर्जुन देव (1581 ईसवी से 1606 ईसवी)

-गुरु अर्जुनदेव सिक्खों के पांचवें गुरु बने गुरु बने।

-गुरु अर्जुनदेव ने अमृतसर शहर में स्थित अमृतसर जलाशय के मध्य हरमिंदर साहिब का निर्माण करवाया।

Note- हरमिंदर साहिब की नींव प्रसिद्द सूफी संत ‘ मियां मीर’ द्वारा रखी गई, मियां मीर ‘ कादरी संप्रदाय ‘ से संबंधित थे ।

-गुरु अर्जुन देव ने करतारपुर, तरनतारन तथा 1595 में गोविंदपुर ( व्यास नदी के किनारे ) नामक शहर की स्थापना की।

-इन नगरों के निर्माण के लिए गुरु अर्जुनदेव ने अपने अनुयायियों को धन एकत्रित करने के लिए भेजा, उनके ये अनुयायी ‘मंसद’ और ‘ मेउरा ‘ कहलाए।

-इन्होंने अपने अनुयायियों को अपनी आय का 1/10 भाग गुरु को समर्पित करने का आदेश दिया।

-इन्होंने अमृतसर एवं संतोषसर नामक जलाशय भी निर्मित करवाएं।

-गुरु अर्जुन देव द्वारा ही सिक्ख धर्म में ‘अनिवार्य आध्यात्मिक कर’ लेना शुरू किया गया।

-1604 ईस्वी में गुरु अर्जुन देव ने गुरुनानक के प्रेरणाप्रद विचारों तथा उनके प्रेरणादायक गीतों को संकलित कर सिक्ख धर्म के धार्मिक और पवित्र ग्रंथ आदि ग्रंथ की रचना की।

Note- आदिग्रंथ में सिक्ख गुरुओं के साथ कबीर , नामदेव तथा रैदास जैसे सूफी संतों की रचनाओं को भी शामिल किया गया हैं।

-मुगल सम्राट जहांगीर के विद्रोही पुत्र खुसरो की सहायता करने के कारण जहांगीर ने 1606 ईस्वी में गुरु अर्जुन देव को मृत्युदंड दे दिया।

-गुरु अर्जुन देव को सच्चा बादशाह भी कहा जाता है।


6- गुरु हरगोविंद (1606 ईसवी से 1645 ईसवी)

-गुरु हरगोविंद सिक्खों के छठे गुरु बने।

-गुरु हरगोविंद ने सिक्खों को स्वयं की रक्षा करने के लिए शस्त्र धारण करने की अनुमति दी एवं सिक्खों को सैनिक शिक्षा देकर उनके भीतर सैन्य भावना का विकास किया इस प्रकार गुरु हरगोविंद ने सिक्खों को एक लड़ाकू जाति में परिवर्तित किया तथा एक मजबूत सैन्य संगठन में बदला।

-इन्होंने अमृतसर नगर की किलेबंदी करके वहां अकाल तख्त (ईश्वर का सिंहासन) का निर्माण करवाया जिसकी ऊंचाई 12 फुट थी।

-गुरु हरगोविंद दो तलवार लेकर अपनी गद्दी में बैठा करते थे तथा इन्होंने दरबार में नगाड़ा बजाने की व्यवस्था भी की थी।

-इन्होंने अपने अनुयायियों को मांसाहार करने की अनुमति दी तथा अपने अनुयायियों से दान में धन के बदले शस्त्र और घोड़े लेना शुरू किया।

-मुगल बादशाह जहांगीर ने गुरु हरगोविंद को ग्वालियर के किले में 2 वर्ष तक नजरबंद रखा।

-गुरु हरगोविंद द्वारा कीरतपुर (कश्मीर) नामक नगर की स्थापना की गई।

-इनके द्वारा स्थापित शहर कीरतपुर में ही 1645 ईसवी में इनकी मृत्यु हो गई।


7- गुरु हरराय (1645 ईसवी से 1661 ईसवी)

-सिक्खों के सातवें गुरु हरराय ने भी गुरु हरगोविंद के समान सिक्खों को सैनिक शिक्षा प्रदान की।

-इनके समय काल में ही शाहजहां के चार पुत्रों के मध्य उत्तराधिकार का युद्ध हुआ, जिसमें सामुगढ़ के युद्ध के बाद पराजित दारा शिकोह गुरु हरराय से मिलने आया, गुरु हरराय ने दारा शिकोह को अपना आशीर्वाद दिया, इससे नाराज औरंगजेब ने गुरु हरराय को दिल्ली आने का आदेश दिया, गुरु हरराय स्वयं दिल्ली नहीं गए अपितु अपने पुत्र रामराय को दिल्ली भेजा। दिल्ली में रामराय के कार्यों से औरंगजेब अत्यधिक प्रसन्न हुआ तथा राम राय को भूमि भेंट दी। परंतु अपने पुत्र राम राय के कार्यों से गुरु हरराय अत्यधिक नाराज हुए तथा अपने छोटे पुत्र हरकिशन (6 वर्षीय) को गुरु गद्दी का उत्तराधिकारी घोषित किया।


8- गुरु हरकिशन (1661 ईसवी से 1664 ईसवी)

-सिक्खों के आठवें गुरु हरकिशन का अपने भाई रामराय से मतभेद हुआ।

-गुरु हरकिशन ने दिल्ली जाकर औरंगजेब को ‘गुरु पद’ के विषय में समझाया था।

-गुरु हरकिशन की चेचक रोग के कारण मृत्यु हो गई।

Note- रामराय ने देहरादून में अपनी एक अलग गद्दी की स्थापना की तथा उनके अनुयायी ‘ रामरायी ‘ कहलाए।


9- गुरु तेग बहादुर (1664 ईसवी से 1675 ईसवी )

-सिक्ख धर्म के नववें गुरु तेग बहादुर गुरु हरगोविंद के पुत्र थे।

-इनके समय उत्तराधिकार की लड़ाई शुरू हुई अतः इन्होंने अमृतसर को छोड़कर ‘ मखोवाली’ में अपनी गद्दी स्थापित की।

-1675 ईस्वी में मुगल सम्राट औरंगजेब ने इन्हें दिल्ली बुलाकर इस्लाम धर्म स्वीकार करने का आदेश दिया परंतु गुरु तेग बहादुर ने वीरता के साथ इस्लाम धर्म स्वीकार करने के आदेश का खंडन कर दिया नाराज होकर औरंगजेब ने इन्हें पांच दिन की अत्यंत पीड़ादायक यातनाएं दी तथा अंत में मृत्युदंड दे दिया।

-जिस स्थान पर गुरु तेग बहादुर को मृत्युदंड दिया गया वर्तमान में उस स्थान पर शीशगंज गुरुद्वारा (दिल्ली) स्थित है, जो इनकी शहादत का प्रतीक माना जाता है।

Note- शीश गंज साहिब गुरुद्वारा नौ ऐतिहासिक गुरुद्वारों में से एक है, यह गुरुद्वारा पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक में स्थित है, इस गुरुद्वारे का निर्माण 1783 में ‘ बघेल सिंह ‘ ने गुरु तेग बहादुर की शहादत के प्रतीक के रूप किया था।


10- गुरु गोविंद सिंह (1675 ईसवी से 1708 ईसवी)

-सिक्खों के दसवें एवं अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह थे जो नवे गुरु गुरु तेग बहादुर के पुत्र थे।
जन्म- 1666 ईसवी में
जन्मस्थान– पटना

पारिवारिक जीवन-

-गुरु गोविंद सिंह की दो पत्नियां सुंदरी एवं जीतू तथा चार पुत्र अजीत सिंह, जुझारू सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह थे।

-गुरु गोविंद सिंह ने आनंदपुर नगर की स्थापना की तथा यही अपनी गद्दी स्थापित की।

-सिरमौर के पहाड़ी राजा मेदनी प्रकाश द्वारा गुरु गोविंद सिंह को आमंत्रित करने पर गुरु गोविंद सिरमोर गए तथा वहां ‘पाओन्टा ‘ (हिमांचल प्रदेश) नामक क्षेत्र की स्थापना की, इसी क्षेत्र में इन्होंने सिक्खों को लड़ाकू सैनिक प्रशिक्षण दिया तथा कृष्ण अवतार नामक एक ग्रंथ की भी रचना की।

गुरु गोविंद सिंह द्वारा लड़े गए युद्ध –

-श्रीनगर (गढ़वाल) के शासक फतेहशाह ने अन्य पहाड़ी राजाओं के साथ मिलकर ‘भगनी’ पर आक्रमण किया, गुरु गोविंद सिंह ने इन्हें पराजित कर युद्ध को जीता। इस युद्ध के पश्चात 1688 से 1690 के मध्य गुरु गोविंद सिंह ने चार किले बनवाए जो निम्न है – आनंदगढ़, केशगढ़,लौहगढ़ तथा फतेहगढ़

नादोन का युद्ध (1690 ईसवी )-

-अलिफ खान के नेतृत्व में मुगल सेना ने पहाड़ी राज्य पर आक्रमण किया।

– गुरु गोविंद सिंह ने इस युद्ध में पहाड़ी राज्यों का समर्थन किया और मुगल सेना से युद्ध लड़ा।

-नादोन के युद्ध में गुरु गोविंद सिंह की विजय हुई।

आनंदपुर का प्रथम युद्ध(1701 ईसवी )-

-औरंगजेब के आदेश अनुसार राजा भीम चंद ने आनंदपुर पर आक्रमण किया परंतु यह पराजित हुआ अतः इसकी सहायता के लिए सरहिंद के सूबेदार वजीर खां द्वारा सेना भी भेजी गई। जिससे आनंदपुर के द्वितीय युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार हुई।

आनंदपुर का द्वितीय युद्ध (1704 ईसवी )-

-इस युद्ध में गुरु गोविंद सिंह के दो पुत्रों जोरावर सिंह फतेह सिंह को बंदी बना लिया गया तथा सरहिंद ले जाकर इस्लाम कबूल करने के लिए बाध्य किया गया जोरावर और फतेह द्वारा इस्लाम ना कबूल करने पर इन्हें सरहिंद के मुगल फौजदार वजीर खान द्वारा दीवार पर जिंदा चिनवा दिया गया।

चकमौर का युद्ध (1705 ईस्वी )-

-मुगल सेना के साथ हुए इस युद्ध में गुरु गोविंद सिंह के दो अन्य बेटे अजीत सिंह और जुझारू सिंह भी शहीद हो गए ।

खिदराना का युद्ध (1705 ईसवी )-

-इस युद्ध में गुरु गोविंद सिंह विजय रहे तथा मुगल सेना को हार का मुंह देखना पड़ा।

खालसा पंथ की स्थापना (1699 ईसवी )-

-गुरु गोविंद सिंह ने 1699 ईस्वी में खालसा पंथ की स्थापना की।

-गुरु गोविंद सिंह ने वैशाखी के अवसर पर केशगढ़ नामक स्थान पर अपने शिष्यों से बलिदान मांगा। दयाराम खत्री धर्मदास, मोहकमचंद्र छीम्बा, हिम्मत भीवर तथा साहबचंद्र नामक अनुयायी जीवन बलिदान करने के लिए आगे आए और पंच प्यारे कहलाए।

-गुरु गोविंद सिंह ने 80000 सैनिकों की खालसा सेना का गठन किया।

-गुरु गोविंद सिंह ने सिक्ख पुरुषों के नाम में ‘ सिंह ‘ तथा सिक्ख महिलाओं के नाम के आगे ‘ कौर ‘ शब्द जोड़ा।

-गुरु गोविंद सिंह ने आदिग्रंथ विलुप्त हो जाने पर पुनः आदिग्रंथ का संकलन करवाया इसी कारण से आदिग्रंथ को‘ दशम पादशाह ‘ का ग्रंथ भी कहा जाता है।

-गुरु गोविंद सिंह ने स्वयं को सच्चा पादशाह  कहा था, तथा सिखों को 5 ‘ककार’ अनिवार्य रूप से धारण करने का आदेश दिया।

पांच ककार- केश, कंघा, कृपाण, कच्छा और कड़ा ।

-गुरु गोविंद सिंह द्वारा ‘ पाहुल प्रणाली’ की भी शुरुआत की गई।

-औरंगजेब के पुत्रों के मध्य उत्तराधिकार की लड़ाई में गुरु गोविंद सिंह ने बहादुरशाह का साथ दिया।

मृत्यु – नांदेड़ नामक स्थान पर 1708 में अजीम खान नामक पठान ने गुरु गोविंद सिंह को घायल कर दिया, घायल अवस्था में ही गुरु गोविंद सिंह ने अजीम खान को मार डाला।

शहादत प्राप्त करने से पहले गुरु गोविंद सिंह ने कुछ बातें निश्चित की-

– गुरु गद्दी समाप्त कर दी तथा गुरुवाणी और आदिग्रंथ को ही गुरु का स्थान दिया।

– अपने एक शिष्य बंदा बहादुर को सिक्खों का राजनीतिक नेतृत्व ग्रहण करने का आदेश दिया।

– गुरु गोविंद सिंह ने अपने अंतिम शब्दों में बोला कि ” जहां गुरु को मानने वाले 5 शिष्य उपस्थित होंगे वही गुरु भी उपस्थित हो जाएंगे।”

-“विचित्र नाटक” गुरु गोविंद सिंह की आत्मकथा है इसी के साथ इन्होंने  ‘ चन्दीदीवर’  नामक पुस्तक भी लिखी है।

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