उत्तराखंड राज्य के प्रमुख वाद्य यन्त्र
Major Instruments of Uttarakhand State
pramukh vadhya yantra ( uttarakhand )
उत्तराखंड राज्य की लोक संगीत परम्परा काफी समृद्ध रही है , संगीत के प्रमुख घटक के रूप में वाद्य यंत्रों का अपना विशेष महत्व रहता है।
उत्तराखंड राज्य भी इसे अछूता नहीं है, राज्य में प्रयोग में लाये जाने वाले वाद्य यंत्रो का अपना एक संस्कृतक महत्व है, जो अपने आप में उत्तराखंड के इतिहास को समेटे हुए है
इस प्रकार उत्तराखंड में प्रमुख रूप से चार प्रकार के वाध्य बजाये जाते रहे हैं,जो निम्न प्रकार से हैं-
1) धातु या घन वाध्य-
जैसे- घंटा,विणाई,थाली(कांसेकी),मंजीरा,घुंघरू,झांझ,करताल,धतिमा,आदि|
2) चर्म वाध्य-
जैसे- ढोल,नगाड़ा,थापली,हुडकी,सईया,डौंर,दमामा,या दमाऊ,आदि|
3) तार या तांत यन्त्र-
जैसे- सारंगी,एकतारा,दो तारा,वीणा आदि|
4) सुषिर या फूंक वाध्य-
जैसे- तुरही,रणसिंगा,नागफनी,संख,मोछंग,अल्गोजा(बांसुरी),मशकबीन आदि|
नोट-उपरोक्त में से कुछ वाध्य यंत्रों का संक्षिप्त वर्णनं निम्न प्रकार से है-
1) विणाई-
विणाई लोहे से बना एक छोटा धातु वाध्य यन्त्र है, इसके दोनों सिरों को दांतों के वीच दबाकर बजाया जाता है, किन्तु यह वाध्य यन्त्र अब विलुप्त होने की कगार में है |
2) हुडुक या हुडकी-
हुडकी तथा हुडुक भी यहाँ का प्रमुख वाध्य यन्त्र है।
इसकी लम्बाई एक फुट तीन इंच होती है,इसके दोनों पूड़ियों को बकरी की खाल से बनाया जाता है।
इसे प्रेरक प्रसंग व जागर तथा कृषि कार्यों में बजाया जाता है, यह दो प्रकार (बड़ा हुडुक व छोटा सईत्य) का होता है |
3) दमाऊ या दमामा-
पहले इसका प्रयोग प्रायः युद्ध वाद्य यंत्र के रूप में राज दरबार के नक्कारखानों में होता था ,किन्तु अब यह एक लोक वाध्य है|
इसके द्वारा धार्मिक नृत्यों से लेकर अन्य सभी नृत्य संपन्न किये जाते हैं|
ढोल के लिए प्रत्येक ताल में दमामा का प्रयोग सर्वदा अनिवार्य है|
यह वाध्य यन्त्र ताम्बे का बना होता है, जो कटोरे के सामान होता है इसके मुख पर मोटे चमड़े की पुड़ी मड़ी जाती है|
4)डौंर-थाली-
डौंर या डमरू उत्तराखंड राज्य का एक प्रमुख वाध्ययन्त्र है,
जिसे हाथ या लाड़ूक से तथा थाली से डौंर से साम्य बनाकर बजाय जाता है।
डौंर प्रायः सान्दड़ की ठोस लकड़ी को खोखला करके बनाया जाता है,
जिसके दोनों ओर बकरे के खाल चढ़ी होती है |
चरम वाद्यों में डौंर ही एक ऐसा वाध्य यन्त्र है, जिसे कंधे में नहीं लटकाया जाता है अपितु दोनों घुटनों के बीच रख कर बजाय जाता ,
डौंर से प्रायः गंभीर नाद निकलता है, जो रौद्र तथा लोमहर्षक होता है यह मुख्यत जागर में बजाय जाता है |
5)मोछंग-
यह लोहे की पतली शिराओं से बना छोटा सा वाध्य यन्त्र है, जिसे होठों से बजाया जाता तथा इसमें अँगुलियों का मुख्य संचालन होता है।
जिससे की की मधुर स्वर निकलता है, इस वाध्य यन्त्र को घने वनों में पशुचारक मुख्यतः बजाया करते है|
6)मशकंबीन-
यह एक यूरोपियन वाध्य यन्त्र है,जिसे पहले केवल सेना के बेंड में बजाया जाता था।
यह कपडे का थैलीनुमा आकार का होता है, जिसमे पांच प्रकार की बांसुरी ; जैसे -यन्त्र लगे होते हैं, यह नाली हवा फूंकने के काम आती है |
7)अल्गोजा-
यह बांसुरी परिवार का एक यन्त्र है,यह बांस या मोटे रिंगाल की बनी होती है।
जिसे स्वतंत्र या सह्वाध्य यंत्रों दोनों के रूप में बजाया जाता है, साथ ही इसके स्वरों के साथ नृत्य भी होता है,खुदेड़ या झुमैलो गीतों में बांसुरी बजाई जाती है|
8)तुरही या रणसिंगा-
तुरही और रणसिंगा(भंकोर) एक दुसरे से मिलते-जुलते फूंक वाध्य यन्त्र है,
जिन्हें पहले युद्ध के समय बजाया जाता था।
यह ताम्बे का बना एक नाल के रूप में होता है मुख की संकरा होता है,इसे मुह से फूंक मार कर बजाया जाता है|
वर्तमान में देवी-देवताओं के नृत्य करवाने तथा दमामा के साथ इसका उपयोग किया जाता है|
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